Tuesday, July 20, 2010

सपने


पलकों पर सजाए थे सपने कई
चुन-चुन कर मैने
जिंदगी की ठोकरों से कब
छलके आंखों से पता ही नही चला।

4 comments:

Ashok Priyadarshi said...

महकती फिजाओं में
प्यार की वादियों में
मैं मचलती सकुचाती आगे बढ़ी
और तुम भी बढ़ने वाले थे
बाहों में सारी कायनात समेटने वाले थे
bahut achha, keep it up

सुनील पाण्‍डेय said...

रश्मि जी बहुत अच्‍छी पंक्तियां। प्रत्‍येक शब्‍द कुछ कह रहे हैं।

sunil pandey

सुनील पाण्‍डेय said...

हिम्‍मत मत हारिये, लगे रहिये। आपकी रचना बहुत कुछ बोल रही हैं।
सुनील पाण्‍डेय

Anonymous said...

उफ्फ - संवेदनशील - बहुत खूब

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main kaun hun?main kya hun?apne aap ko janne ki talash av bhi jari hai......ishwar ki banai ek kriti hun or apne shrijan ke bare me khud shrata hi bata sakta hai ......