Monday, August 16, 2010

-पुरातनपंथी सोच की गुलाम हमारी मानसिकता

देश आजादी की 63वीं वर्षगांठ मना रहा है। देश से अंग्रेजों की विदाई के छह दशक बाद एक बार फिर लेखा जोखा किया जा रहा है कि हमने क्या-क्या उपलब्धियां हासिल की, हमने क्या खोया, क्या पाया। इस हिसाब किताब में हमारी आधी आबादी यानि की महिलाओं की स्थिति पर भी नजर दौड़ाते हैं।
आजादी के बाद महिलाओं ने खूब तरक्की की है। आज जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएं कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं। बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर तिरंगा फहरा कर देश का नाम रोशन किया तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति पद पर आसीन होकर श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने नारी जाति को गौरवान्वित किया। हर किसी की जुबान पर महिलाओं की तरक्की के आंकड़ें हैं ....सोनिया गांधी, इंद्रा नूई,चंदा कोचर ,ऐश्वर्या राय, किरण बेदी, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल आदि। व्यवसाय से लेकर लेखन तक, फिल्मों से लेकर खेल तक हर क्षेत्र में महिलाओं ने तरक्की की है ...लेकिन क्या इन कुछेक गिनी -चुनी महिलाओं की तरक्की को देख कर आप ये मान लेंगे की भारत में महिलाओं ने तरक्की की है ...? या समाज में महिलाओं की स्थिति सुधऱी है...? या उनके प्रति समाज का नजरिया बदला है ...? सच तो ये है कि आजादी के पहले महिलाओं की जो स्थिति थी आज उससे भी बदतर हालात हैं। गौर से देखें तो पता चलता है कि महिलाओं की तरक्की में समाज का उतना बड़ा योगदान नहीं जितना कि कामयाब महिलाओं की निजी कोशिशों का रहा है।
करीब एक अरब 15 करोड़ की आबादी में महिलाओं की संख्या लगभग 50 करोड़ इसमें से रोजाना 2/3 विवाहिताएं घरेलु हिंसा की शिकार होती हैं। कहने की जरूरत नहीं कि घरों में महिलाओं पर हाथ उठाने का काम सिर्फ अनपढ़ जाहिल ही नहीं कर रहे , बल्कि पढ़े लिखे कहने जाने वाले व्हाइट कॉलर प्रोफेशनल भी दरवाजे के भीतर जाते ही यमदूत बन जाते हैं।
आज भी स्त्रियों को दहेज के लिए जलाया जाता है।संसद में पेश किए गए एक आंकड़े को अनुसार 2006 में 7618 विवाहिताओं की दहेज के लिए जलाया गया 2007 में 8093 तथा 2008 में 8172 हत्याएं दहेज के लिए की गईं हैं। तमाम कानूनी धाराओं के बावजूद समाज का ये कोढ़ खत्म नहीं हो रहा है तो इसकी वजह यही है कि हमारी सोच में बदलाव नहीं आ रहा है।
लाखों की संख्या में भ्रूण हत्याएं रोजाना हो रही हैं। प्रतिभा पाटील देश की राष्ट्रपति हो सकती हैं, साइना नेहवाल की उपलब्धियों पर देश गर्व कर सकता है, लेकिन करोड़ों परिवार ऐसे हैं जो अपने घर में लड़की पैदा होते नहीं देखना चाहते हैं। जरा हरियाणा और पंजाब से आने वाली खबरों पर नजर दौड़ाएं। न जाने कितनी लड़कियों को कोख में ही मार दिया जाता है। जिन अस्पतालों में एर्बाशन होते हैं उनकी टैगलाइन होती है ...आज सौ खर्च करें कल लाखों बचाएं। कहने की जरूरत नहीं कि यहां भ्रूण हत्याओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। य़ुनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं की संख्या दिन ब दिन घटती जा रही है। विश्व में जहां 100 पुरूषों पर 105 महिलाएं हैं वही भारत में 100 पुरूषों पर महिलाओं की संख्या है 93। ये आंकड़े उपर कही बातों की पुष्टि करते हैं । हरियाणा पंजाब में स्थिती और भी बुरी है। देश में जहां एक हजार पुरुषों पर 927 महिलाएं हैं वहीं हरियाणा में हजार पुरूषों पर 861 औऱ पंजाब में 874 महिलाएं हैं। इन राज्यों में हालात इतने बुरे हैं कि गरीब परिवारों के लड़के कुंवारे ही रह जा रहे हैं। यहां पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के पिछड़े इलाकों से लड़कियां खरीद कर लाई जाती हैं जिससे कि घर बस सकें। इन परिवारों में हालत ये होती है पति पत्नी एक दूसरे की जुबान भी नहीं समझते।
आनर किलींग के नाम पर रोज हत्याएं हो रही हैं ...ऐसा नही है कि आनर किलिंग के नाम पर सिर्फ लड़कियों की की हत्याएं होती है, लड़के भी मारे जा रहे हैं। लेकिन लड़की अगर अपने से नीची जाति के लड़के से शादी कर लेती है तो फिर उसकी जिंदगी भगवान के ही हाथ में होती है। माना जाता है कि नीची जाति के लड़के के साथ शादी से परिवार की प्रतिष्टा नष्ट हो जाती है। कहने की जरूरत नहीं कि आज भी समाज की सोच बदली नही है और घऱ की इज्जत और मान मर्यादा के नाम पर लड़कियों की ही बलि चढ़ती है।
पूरे विश्व में सबसे ज्यादा रेप केस भारत में होते हैं। कोई ऐसा दिन नही होता जिस दिन अखबार या टीवी पर बलात्कार की खबरें नही होतीं। आंकड़ों के अनुसार भारत में हर घंटे में एक महिला के साथ बलात्कार होता है और दुख की बात यह है कि इन सबको हमारे समाज में गंभीरता से नही लिया जाता है। हमारा समाज इस सबका दोषी लड़की को ठहरा कर साफ बच निकलता है।
महिलाओं के प्रति हमारे समाज की सोच का एक ताजा उदाहरण है, लेखन के क्षेत्र में महिलाओं की उपलब्धयों पर शर्मनाक टिप्पणी। जिन्होंने कहा वो नामचीन हैं, बहुत बड़े विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। उनका नाम यहां नहीं दिया जा रहा तो सिर्फ इस वजह से कि ऐसे लोग नाम के ही भूखे होते हैं और इससे उनको प्रचार ही मिलता है। इस विकृत मानसिकता वाले समाज के कुछ ठेकेदारों को महिलाओं के साहित्य के क्षेत्र में दिए गए संपूर्ण योगदान में सिर्फ केलि क्रिड़ाएं ही दिखी उनका उम्दा लेखन नहीं दिखता। हम ऐसी टिप्पणियां कर महादेवी वर्मा, महाश्वेता देवी जैसी महान लेखिकाओं का भी अपमान कर रहे हैं ।
इसका मतलब ये नहीं है कि महिलाएं तरक्की नहीं कर रही हैं। देश आगे बढ़ रहा है और महिलाओं का भी विकास हो रहा है। आजादी के बाद से महिला साक्षरता का प्रतिशत बढ़ कर 54 प्रतिशत तक पहुंच गया है। सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं की संख्या बढ़ी है। लेकिन, आंकड़ों की भुलभुलैया समाज का मनोविज्ञान नहीं बतातीं। बसों में चलती महिलाओं से पूछें जरा कि रोज ऑफिस आने जाने में उनपर क्या बीतती है, तो विकास का सच सामने आ जाता है और तब पता चलता है कि हमारी मानसिकता हमारे पुरातनपंथी सोच की अब भी गुलाम है।

Friday, August 6, 2010

रिश्ते


सरे राह सफऱ में
कोई हांथ मिलाता क्यूं है ........
निभा नही सकता तो
रिश्ते बनाता क्यूं है .......?

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main kaun hun?main kya hun?apne aap ko janne ki talash av bhi jari hai......ishwar ki banai ek kriti hun or apne shrijan ke bare me khud shrata hi bata sakta hai ......