Tuesday, July 20, 2010

सपने


पलकों पर सजाए थे सपने कई
चुन-चुन कर मैने
जिंदगी की ठोकरों से कब
छलके आंखों से पता ही नही चला।

Saturday, July 10, 2010

चुप बेहतर है...

दिल करे मजबूर जुबां को
हाले दिल बयां करने को
चाहते रहेंगे जीवन भर
पर ना खोलेंगे जुबां को

बेहतर है चुप ही रहे हम
था तो बहोत कुछ कहने को।

कसक


कल मैने कुछ लिख डाला था
और तुम पढ़ने वाले थे
प्रेम की गागर को
समंदर में उड़ेलने वाले थे।

महकती फिजाओं में
प्यार की वादियों में
मैं मचलती सकुचाती आगे बढ़ी
और तुम भी बढ़ने वाले थे
बाहों में सारी कायनात समेटने वाले थे

पर तभी वक्त की ठोकर से
ये हंसीन सपना टूट गया
किनारे तक पहुंच कर कोई
मझधार में डूब गया
पर जीवन भर के लिए एक
कसक छोड़ गया।

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main kaun hun?main kya hun?apne aap ko janne ki talash av bhi jari hai......ishwar ki banai ek kriti hun or apne shrijan ke bare me khud shrata hi bata sakta hai ......