Friday, August 6, 2010

रिश्ते


सरे राह सफऱ में
कोई हांथ मिलाता क्यूं है ........
निभा नही सकता तो
रिश्ते बनाता क्यूं है .......?

7 comments:

सुनील पाण्‍डेय said...

रश्‍मि जी,आपने एकदम सच्‍चाई को कलम के जरिये उकेर दिया है। वर्तमान जिन्‍दगी पर ये पंक्तियां बिलकुल सटीक बैठ रही हैं कि ----सरे राह सफऱ में, कोई हांथ मिलाता क्यूं है ........
निभा नही सकता तो ,
रिश्ते बनाता क्यूं है। बेहतरीन प्रस्‍तुति, अति सुन्‍दर।
सुनील

सुनील पाण्‍डेय said...

बेजोड प्रस्‍तुति, आपने बिल्‍कुल सही लिखा है कि सरे राह सफर में, कोई हाथ मिलाता क्‍यूं है, निभा नहीं सकता तो रिश्‍ते बनाता क्‍यूं है। ये पंक्तियां हर इंसान के उपर सूट करती है। आप इसे सदैव जारी रखें।

सुनील पाण्‍डेय

सुनील पाण्‍डेय said...

बहुत अच्‍छी रचना। खुबसूरत अंदाज। ऐसे ही लिखते रहें।
सुनील

Anonymous said...

khubsurat kavita...iska javab kai dusre loge bhi janna chahte hai

Anonymous said...

यह कविता आप ही जितनी खूबसूरत है....लिखती रहें

KP Tripathi said...

saudebaze ke is duniya ma riste bhe bemanee ho chale ha.riste banaye nahe jate. prakritik rup se apne aap ban jate ha. aise riste kabhe tute nahe

Anonymous said...

"निभा नही सकता तो
रिश्ते बनाता क्यूं है"

विशेष अंदाज में जायज प्रश्न

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main kaun hun?main kya hun?apne aap ko janne ki talash av bhi jari hai......ishwar ki banai ek kriti hun or apne shrijan ke bare me khud shrata hi bata sakta hai ......